हिंदु धर्म का प्रचार एवं प्रसार
हिन्दू धर्म में परिवर्तन की आवश्यकता २
प्राचीन काल में हिन्दू धर्म एक विश्वयापी धर्म था। जब पश्चिमी सभ्यता का उदय भी नहीं हुआ था तब उस समय हिन्दू धर्म एक इकलौते प्रकाश पुंज के सामान था जो विश्व को चरवाह संस्कृति से ऊपर उठाने वाला था। उस समय कई हिन्दू राजाओं द्वारा सुदूर पूर्व में एवं मध्य एशिया में हिन्दू धर्म का प्रचार एवं प्रसार स्वतः ही हुआ। हिन्दू धर्म में किसी को भी बलपूर्वक अन्यथा हिंसा से धर्म परिवर्तन के लिए विवश नहीं किया गया। इसका प्रचार एवं प्रसार एक स्वयं जाग्रति के स्वरुप से हुआ। जिसे भी हिन्दू परंपराएं अच्छी लगी वह हिन्दू धर्म में सम्मिलित हो गया। हिन्दू परंपराएं भी ऐसी थी जो प्राचीन काल से ही प्रकृति से समन्वय रखती थीं। हिन्दू धर्म में प्रकृति को उच्च स्थान प्राप्त था। वनों , पेड़ों, जीवों एवं वातावरण के संरक्षण की व्यवस्था जिसके बारे में पश्चिमी जगत ने अब आधुनिक काल में सोचना शुरू ही किया है वह धारणा हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से ही रची बसी थी। हिन्दू धर्म के अत्यंत प्राचीन होने के कारणवश उस समय यह सिर्फ धर्म के ही नाम से प्रचिलित था क्योकि उस समय इसके आलावा कोई अन्य धर्म था ही नहीं। जैसे जैसे समय व्यतीत होता गया हिन्दू धर्म का प्रसार स्वयं ही होता चला गया। ईसाई एवं इस्लाम धर्म हिन्दू धर्म की तुलना में अभी अपने शैशव काल में ही हैं।
प्राचीन होने का अर्थ यह बिलकुल भी नहीं है की इसमें आधुनिकता नहीं है। बल्कि अन्य धर्मों की अपेक्षा हिन्दू धर्म में आधुनिकता को समाहित करने की क्षमता एवं इच्छा कहीं अधिक है जो कहीं भी और किसी भी अन्य धर्म में देखने को नहीं मिलती। इसका अधुनिकीकरण का स्वाभाव भी प्राचीन काल से ही है जब बुद्धिमान ऋषियों द्वारा इसमें अलग अलग विचारधारों का एकीकरण हुआ। और मेरा मनना है की हिन्दू धर्म का उद्गम ही विभिन्न ऋषियों के विचारों के सम्मिलित होने से ही शुरू हुआ होगा। एक और परंपरा शुरू हुई विद्वानों के शास्त्राथ की जिससे कई प्रकार की भ्रांतियों और गलत धारणाओं का हिन्दू धर्म से निष्काशन हुआ। शकराचार्य द्वारा शास्त्राथ इसका एक अति प्रसिद्ध उदाहरण है।
इसके विपरीत अन्य आधुनिक धर्म जैसे की ईसाई और इस्लाम में आधुनिक विचारों का समाहित होना अत्यंत ही कठिन है और दूसरे शब्दों में यदि कहें की असम्भव है तो कोई अतिष्योक्ति नहीं होगी।
एक और गुण है हिन्दू धर्म में और वह है दूसरे धर्मों के अच्छे विचारों को अपनाना। इसके इसी गुण के कारण भारतवर्ष में हिन्दू धर्म जैन एवं बौद्ध धर्म को भी अपने साथ लेकर चला और स्तिथि यह हुई की इन सभी धर्मों में अंतर करना जनसामान्य के लिए मुश्किल ही रहा और सभी धर्म आपस में मिलजुलकर साथ साथ प्रचलित रहे। इसका एक सर्वसामान्य उदाहरण है दिवाली का त्यौहार जो की सभी भारतीय धर्मों में मनाया जाता रहा है। हिन्दू धर्म एक प्रकार से अनेकता में एकता का एक जीवंत प्रतीक है। और यही बात आज के परिपेक्ष में भारत पर भी लागू होती है।
ईसाई एवं इस्लाम आधुनिक धर्म हैं परंतु इनमे सुधारों को समाहित करने की इच्छाशक्ति नहीं होने के कारण प्राचीन प्रतीत होते हैं। आधुनिक होने के कारण इन धर्मों को अपने प्रचार और प्रसार के बारे में भी चिंतित होना पड़ा जिस विषय में हिन्दू धर्म ने कभी कोई में कभी भी कोई गंभीर चिंतन नहीं किया। इसका नतीजा यह रहा की आज हिन्दू धर्म सबसे ज्यादा मानवतावादी पर्यावरण सरक्षणवादी प्रवर्तनशील आधुनिक विचारों वाला होने के बाद भी सिर्फ आधुनिक भारतवर्ष तक ही सिमित हो गया और अन्य धर्मों का विस्तार होता चला गया।
इसका अर्थ यह है कि हिन्दू धर्म को भी प्रचार और प्रसार की आवश्यकता है। यहाँ पर यह उल्लेख करना सही रहेगा कि हिन्दू धर्म का प्रचार और प्रसार सिर्फ हिन्दू धर्म के सरंक्षण के लिए नहीं अपितु पूरे विश्व में सुख शांति के लिए भी जरुरी है। हिन्दू धर्म में जो स्वन्त्रता है वह अन्य आधुनिक धर्मों में नहीं है जैसे कि ईसाई व इस्लाम। क्योकि वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा सिर्फ और सिर्फ हिन्दू धर्म में ही है।
पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा करें।
आपका दिन शुभ हो। एवमस्तु।
इसका अर्थ यह है कि हिन्दू धर्म को भी प्रचार और प्रसार की आवश्यकता है। यहाँ पर यह उल्लेख करना सही रहेगा कि हिन्दू धर्म का प्रचार और प्रसार सिर्फ हिन्दू धर्म के सरंक्षण के लिए नहीं अपितु पूरे विश्व में सुख शांति के लिए भी जरुरी है। हिन्दू धर्म में जो स्वन्त्रता है वह अन्य आधुनिक धर्मों में नहीं है जैसे कि ईसाई व इस्लाम। क्योकि वसुधैव कुटुम्बकम की धारणा सिर्फ और सिर्फ हिन्दू धर्म में ही है।
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